एक अधूरी ख्वाहिश ! |
एक ख्वाहिश है मेरी जिसे मैं पूरा करना चाहती हूं ।
यह हमेशा अधूरी रहेगी, हां यह बात मैं जानती हूं,
पर फिर भी बहुत तड़प है दिल में,
बस इस ख्वाहिश को एक बार मैं जीना चाहती हूं।
मैं खुद को मरते हुए देखना चाहती हूं,
मैं मेरे मौत की उस शाम से मिलना चाहती हूं।
हां, मैं मेरे मरने के बाद की दुनिया देखना चाहती हूं।।।
क्या वह आसमान भी रोएगा,
जब मेरा लिबास सफेद कफन में होगा।
क्या सचमुच वह जो कहता है,
तेरे मर जाने से मैं मर जाऊंगा,
उसकी आंखों में क्या अश्क होगा।
क्या रुकेगा कोई काम मेरे ना होने से भी,
क्या सच में कोई करेगा याद दिन, हफ्ते और सालों बीत जाने पर भी।
क्या मिलेगा सुकून उनको जिन्हें नफरत है मुझसे,
या वह शख्स आएगा तो सही ना मुझे कंधा देने को ही सही।।।
अरे मैं देखना चाहती हूं ,
यह जो रोज़-रोज़ मेरी फ़िक्र का दावा किया जा रहा है,
इसमें सच्चाई को कितना हक़ दिया जा रहा है।
हां मैं देखना चाहती हूं! मिल तो जाएगा ना सुकून जो परेशान है मुझसे,
हां कहीं ना कहीं शायद मैं दुनिया से भागना भी चाहती हूं।
पर क्या करूं मैं यह करना चाहती हूं।।।
मैं मेरे मरने के बाद की दुनिया देखना चाहती हूं।।।
वह मर जाने पर सब की तारीफ़ में कहे जाने वाले दो शब्द,
हां मैं सुनना चाहती हूं।
कौन कब तक मेरे मर जाने का शोक रखेगा,
मैं इस बात से वाकिफ होना चाहती हूं।
हां! मैं मेरे मरने के बाद की दुनिया देखना चाहती हूं।
अरे ऐसा नहीं है, कि मैं मर जाना चाहती हूं!
मैं तो बस मेरे मरने के बाद की दुनिया देखना चाहती हूं।
जीते जी, हां जीते जी!
मैं खुद की मौत की शाम देखना चाहती हूं।
बड़ी अजीब सी ख्वाहिश है यह मेरी पर,
फ़िर भी ना जाने क्यों,
मैं इस ख्वाहिश को पूरा करना चाहती हूं।
मैं मेरे मौत के बाद की दुनिया देखना चाहती हूं।।।
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