जन्मे थे जबसे,

अजन्मे होकर भी,

दो दो माताओं की झोली भर दी थी।

भला दो माताओं की ही क्यों कहूँ,

उसने तो स्वयं धरती की झोली भर दी थी।

नटखट होना तो सिर्फ बहाना था,

बड़े से बड़े काम करके भी बड़ा नहीं कहलवाना था।

वो ठेहरे खुद मायाधारी,

खुद की माया के चक्रव्यूह में फंसने का ढोंग रचाया करते थे।

मुँह पर डाँट खाने पर भी,

छिपकर माखन खाते थे।

गोपियों को मोह में ऐसे करीब बुलाया था,

जैसे उनका कोई पिछले जन्म का वरदान उन्हीं को पूरा करना था।

राधा जी के चर्चे तो जैसे हर एक युगल जोड़े के मुँह पर रहते हैं,

पर क्या उनके जैसा निर्लोभ प्रेम कृष्ण के सिवाय किसी ने पाया है।

कहने को तो झठ कह दिया करते हैं लोग,

कि सोलह हजार रानियों का स्वामी था कृष्ण,

पर क्या उन लोगों में क्षमाता है कि,

सिर्फ़ एक लड़की के आत्म सम्मान को बचाले जब समाज बहिष्कृत कर रहा हो।

काल के निर्णय से कोई नही बचता, 

सिर्फ इस दृश्य को जीवान्तर करने के लिए अजन्मा होकर भी मरे थे वह।

वरना भला काल में इतना साहस,

कि वो उदित जिससे हुआ उसे अस्त करने चले।